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SHAYARI LOVE

Thursday, April 9, 2020

हक


मेरा हक

हो ही नहीं सकता नसीब बुरा मेरा
मेरे खुदा ने लिखा है मुझे कोई शक नहीं।

परेशानियों के आगे कैसे तोड़ दू दम
मुख्तसर सा डर है अपनों को खोने का।

हक में बोलना आदत है मेरी
डर मगर आई बात मुझ तक तो खुद(उसको) को खोने का

मोहब्बत करना कोई गुनाह नहीं लगा मुझे
इंसान सही हो वो क्या पता फिर किस्मत में होने का।

आज़ादी ने संभाला है मुझे के खुद का तारूफ करा दिया
डर है जो मिला उसको खोकर खुद में कैद होने का।

बड़े मशहूर हो गए हिम्मत से आजकल
क्या बताऊं कैसा डर है मुझमें किसी के ना पाने का।

इस शब में दुआ खुदा नसीब मेरा बेहतर लिख दे
अधूरी हूं उसके बिना उसका साथ मुकम्मल लिख दे।

कैसे बताऊं के नाम भी अधूरा लिखती है अब (Zena)
अधूरे में पूरा है इसे कोई कैसे समझे।
                         WRITTEN BY_
                                    ZENAB KHANAM

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