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SHAYARI LOVE

Wednesday, April 8, 2020

खुदा नाराज़ है हमसे (Part 2)


खुदा नाराज़ है हमसे

खाली है मदीना और इबादतघरों में पाबंदियां
गफलत में थे पर मसरूफियत ये दुनिया की थी
जो ख्वाहिश थी अपनो की वो ज़रूरी हो गई
मुकम्मल हो गई मगर नफरतें अधूरी रह गई।

मिला है आज मौका तो खुद को सुधार लूं
चाहत तो ये भी के ज़माना मैं संवार दू
के उम्मत को क्या हुआ या मैं ही गुमनाम हूं
अज़दियो में हूं फिर भी लगता है आज क़ैद हूं।

सजदों से मान जाएगा वो यकीन है उस पे
आंसू आज निकाल दू कैसे उसे मना लूं
नाराज़ है खुदा मुझसे या उम्मत भी है कुसुरवार
सगीरा है कुछ कबीरा है गुनाह कैसे खुद को में जमाल दू।

तलब है मेरी कबसे उसकी ये खबर है उसको
मदीना मैं जाऊं या किसी की रोटी का जरिया बन जाऊं
दुआं करू पूरी दुनिया के लिए कै
मैं ख़ुदग़र्ज़ बन जाऊं।


हिदायत है उसके पास के वो अब नसीब कर दे
गुनाहगार हूं बहुत मायूसी है दिल में
आज खाली है मदीना ए अर्श
इसे अपनी बदनसीबी मैं करार दू।
                         Written by_
                                    Zenab khan

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