फरियाद
हो अगर मेरे हिस्से कोई ख़ुशी तुम्हारे बस में
फरियाद है मेरी मुझे मेरा हक दे दो
ख्वाहिशें क्या होती है मुझे क्या पता
उसी की आरज़ू है मुझे मेरी मंज़िल दे दो।
हो अगर कोई रास्ता उस तक जाने का
जाना है उस तक बस मुझे मेरे पंख दे दो
सस्ती ही तो है कितनी खुशी मेरी
महज़ उस देख खुश हो जाना
मोहब्बत है मेरी वो मुझे मेरा चैन दे दो।
नाराज़गी भी होती है शिकायत भी होती है
मगर वो प्यार भी करता है हर बात भी सुनता है
नहीं आए जिस रोज़ वो कहां दिन वो गुजरता है
मेरी सुबह है वो मेरी शाम वो दे दो।
दुआ में बसता है वो हर नमाज़ में मेरी
जायज़ है कम से कम ये हसरत मेरी
नहीं करी शिकायत ना करूंगी कभी
मंज़िल मैं पा लूंगी मुझे मुकाम वो दे दो।
इज्ज़त से महरूम रखता है नहीं वो
बराबरी बेइंतहा मोहब्बत है इससे ज़्यादा क्या कहूं
मजबूती लगती है उसका साथ मुझे जैसे
ज़ख्मी है बड़ी मुझे मरहम वो दे दो।
इकलौती ख्वाहिश है वो मेरी
मेरा अरमान मुझे दे दो
उसके साथ गुजारना है अब वक़्त बाकी
इज्ज़त के साथ रजामंदी और खुशी से रुखसती दे दो।
WRITTEN BY_
ZENAB KHAN
हो अगर मेरे हिस्से कोई ख़ुशी तुम्हारे बस में
फरियाद है मेरी मुझे मेरा हक दे दो
ख्वाहिशें क्या होती है मुझे क्या पता
उसी की आरज़ू है मुझे मेरी मंज़िल दे दो।
हो अगर कोई रास्ता उस तक जाने का
जाना है उस तक बस मुझे मेरे पंख दे दो
सस्ती ही तो है कितनी खुशी मेरी
महज़ उस देख खुश हो जाना
मोहब्बत है मेरी वो मुझे मेरा चैन दे दो।
नाराज़गी भी होती है शिकायत भी होती है
मगर वो प्यार भी करता है हर बात भी सुनता है
नहीं आए जिस रोज़ वो कहां दिन वो गुजरता है
मेरी सुबह है वो मेरी शाम वो दे दो।
दुआ में बसता है वो हर नमाज़ में मेरी
जायज़ है कम से कम ये हसरत मेरी
नहीं करी शिकायत ना करूंगी कभी
मंज़िल मैं पा लूंगी मुझे मुकाम वो दे दो।
इज्ज़त से महरूम रखता है नहीं वो
बराबरी बेइंतहा मोहब्बत है इससे ज़्यादा क्या कहूं
मजबूती लगती है उसका साथ मुझे जैसे
ज़ख्मी है बड़ी मुझे मरहम वो दे दो।
इकलौती ख्वाहिश है वो मेरी
मेरा अरमान मुझे दे दो
उसके साथ गुजारना है अब वक़्त बाकी
इज्ज़त के साथ रजामंदी और खुशी से रुखसती दे दो।
WRITTEN BY_
ZENAB KHAN
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