दूसरा जन्म
घर में उस दिन मेहमान आए हुए थे कोई रिश्तेदार नहीं बल्कि भैया के कुछ दोस्त , एग्जाम खत्म होने की खुशी में भैया की तरफ से उनके लिए दावत थी उनके खाना खाते ही मैं पास में आंटी के घर बिरयानी देने गई थी और घर पे सब खाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रहे थे तो मुझे पता था के आंटी कितना भी रोक मगर मुझे बिना बाते मिलाए जल्दी आना है।
मगर उस दिन जब मैने देखा के कुछ सामान अंदर बाहर आ जा रहा है तो फिक्र हुई के कहीं आंटी घर तो खाली नहीं कर रही हैं मेरे दिमाग में कुछ ही देर में कई सवाल पैदा हो गए थे जैसे आंटी घर क्यों खाली कर रही हैं?
कहीं वो कर्ज में तो नहीं आ गई ?
या उनकी बेटी की शादी की वजह से उन्हें पैसे की ज़रुरत की वजह से?
या कहीं उन्हें किसी ने धमकाया तो नहीं ?
वरना उनका यहां कितना दिल लगता है उन्होंने कितनी मेहनत से खुद से पौधे लगाए हैं उनको देख कर तो मुझमें ये पौधे लगाने की लगन पैदा हुई थी।
क्या होगा मेरा अगर वो चली गई तो कितनी बोर जाऊंगी ।
शायद ये नई दीदी है उन्हें ही बेचा होगा?
इतने में मैं उनके दरवाजे तक पहुंची तो उनकी बेटी को प्लेट हाथ में देते हुए बिना कुछ बात किए पूछ लिया के ये सब क्या हो रहा है कहा जा रहे हो आप सब और क्यूं ?
उन्होंने मेरी बात पर हंसते हुए जवाब दिया पागल हम जा नहीं रहे है हमारे किरायेदार है ये ।
मेरे सारे सवालों के जवाब उन्होंने दे दिए थे और इसका ये नुकसान हुआ के मैं भूल गई के घर पे सब मेरा इंतज़ार कर रहे थे और घर जाकर डांट सुनना पड़ेगी सो अलग मगर खाना भी अकेले ही खाना पड़ेगा जो कि मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। अकेले खाना खाने की बात अक्सर खाना खाना भूल जाती थी मगर उस दिन तो मेरी मनपसंद बिरयानी थी तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता।
करीबन 11 बजे जब मैं छत पे नहा कर गई तो एक बच्ची की रोने की आवाज़ ठीक नीचे से आ रही थी और वो कोई और नहीं वहीं थी जो किराए से रहने आई थी हॉस्पिटल से घर कब आई अब पता चला जब उसकी बच्ची ने बताया ।
वक़्त कितनी जल्दी गुजरता है यही सोच में थी के कुछ दिन पहले जब वो आई थी तब उसकी नई नई शादी हुई थी और शादी होने के बाद उसका यहां आना उसके प्यार का नतीजा था जो उसे इस मजबूरी में रहना पड़ रहा था बिना किसी अपने के । उसकी शादी सम्मेलन द्वारा कराई गई थी जिसमे उसको दहेज का सारा सामान मिला था जिससे वो अलग रह सके तो उसे किसी चीज की ज़रूरत ना पढ़े । शादी होने के बाद वो ससुराल गई तो थी मगर कोई भी उस देखकर ये नहीं कह सकता था के उसकी हरकतों की वजह से उसे निकाला गया हो ।हां मगर उसकी मोहब्बत की वजह से जो उसने हर हद से निभाई थी ।हालांकि वो दिखने में काफी अच्छी थी बस उसके चेहरे से वो रूखापन जो गरीबी की वजह से था उसकी रोनक उसकी आंखो में थी जो शायद उसे उसके प्यार के साथ होने की वजह से वो बेफिक्री थी उसकी मुस्कुराहट जो किसी भी अनजान को देखकर भी आ जाती थी उसकी इंसानियत और अखलाक ख़ामोशी से परखे जा सकते थे।
कई बार मैने कोशिश करी के उसके लिए कुछ करू तो सिवाए कुछ अच्छा बने तब उसके लिए पहुंचने के मैं कुछ नहीं कर सकी ।
जब मैं उसके बारे में जानने की कोशिश में आंटी के पास गई तो वो अपने कमरे में जमीन पर लेठी हुई थी मगर उसे देख के अनदेखा करके आंटी के साथ दूसरे कमरे में बात करने चली गई । तो पता चला के वो इस वक़्त पेट से है और खून कि बहुत ज़्यादा कमी उसके शरीर में बताई गई । उन्होंने ये भी बताया के ये कई बार बेहोश हो जाती है और इसके घरवालों में सिर्फ अपनी मां से बात करती है वो भी कभी कभार चुप के इसका शोहर किसी खान पे मजदूरी करता है और अक्सर ऐसा होता है के उसे काम नहीं मिलता और जब ये उसके इंतज़ार में रहती है के वो कुछ लाया होगा तब पकाने की सोचती है फिर दोनों खाना खाते है।
उसकी बच्ची के नसीब से उसके पापा को काम मिल गया था फिर क्यूं कहता है ज़माना के बेटी बोझ होती हैं मगर उस बेटी को जो प्यार मिला था वो वाकय काबिल ए तारीफ था जैसे उस गरीब घर में वो बेटा हो ।
करीबन तीन महीने की हो चुकी थी और अब उसके रोने की आवाज़ भी तेज़ हो चुकी थी । कमज़ोरी तो उसको भी थी ही क्युकी उसको खान पान की उसकी मां के अंदर भी कमी रही और बाहर उसकी मां की सेहत अभी तक नहीं बनने की वजह से उसको दूध नहीं मिल पा रहा था और धीरे धीरे उसको भी खून की कमी की शिकायत बता दी और इसकी वजह से उसको पीलिया हो गया जिसकी वजह से उसके रोने की आवाज़ इतनी कम हो गई के सुनाई भी नहीं देने लगी और मैं ये सोचती के शायद गर्मी की वजह से वो आंगन में बाहर नहीं आती हो इसलिए उसकी आवाज़ नहीं आती मगर वो घर पर नहीं काफी दिनों से हॉस्पिटल में थी ।
WRITTEN BY
ZENAB KHAN
TO BE CONTINUED IN NEXT PART ..........
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