Breaking

SHAYARI LOVE

Monday, February 24, 2020

शहद मेरे गमले का

 
शहद मेरे गमले का

उस दिन ज़ोर ज़ोर से आवाज़ एक बेचने वाले की ने मेरी दिन की कुछ वक़्त की झपकी को ख़राब कर दिया । हालांकि ये आवाज़ें मुझे बहुत लुभाती है अक्सर मगर मुझे पता होता है कि इनमें मेरे काम का कुछ नहीं है ।ज़्यादा ख्वाहिशें रखना हमेशा से पसंद नहीं है तो बस उतनी ही चीजें रखती हूं जितनी ज़रूरत होती है इसलिए बाज़ार जाना भी फ़िज़ूल लगता है।

"शहद लेलो शहद एक दम ताज़ा शहद असली शहद गाड़ा शहद वो भी कम दाम में" जब ये आवाज़ सुनकर में बाहर गई तो देखा कुछ आस पास की औरतें उससे मोल भाव कम कराने में लगी है जो कि ज़्यादातर औरतों की आदत ही होती है उससे भी ज़्यादा वो वहां बातें करने में लगी थी जैसे बहुत दिनों बाद मिली हो मुझे अक्सर ये बात ध्यान में आती थी कि औरतें बुराई करने में बदनाम है ये बात कितनी सच है और उस दिन ये बात साबित हो गई जब एक ने दूसरी से कहा कि
" मेरी बहू आज उसके मायके गई है ज़िद से ना जाने कब आएगी " जब ये बात उन्होंने बड़े नाराजगी से  ज़ाहिर करी ये क्यूंकि उनसे इतना काम नहीं होता और बच्चो की तबियत वहां ख़राब हो जाती है क्यूंकि उनके हिसाब से उनकी बहू वहां जाकर बच्चो का ध्यान नहीं रखती और बाकी लोग उससे प्यार तो करते है मगर ध्यान नहीं देते जैसे वो देती हैं।इतनी बात थी के दूसरी आंटी बोल पढ़ी "अरे आजकल की बहुएं ऐसी ही होती है इनकी ना मानो तो घर में हल्ला कर दे और बच्चो पे गुस्सा निकले अब अपन इनकी नहीं माने तो कहा जाए ऐसी ज़िन्दगी ही है बस अपनी तो जवानी में अपन कितना काम करते थे और अब बुढ़ापे में बहुएं चैन नहीं लेने देती"।
इतने में मैने उनको सलाम किया और बिना ज़्यादा बात किए उससे भाव पूछने लग गई।
"200 रुपए लीटर और दो लीटर लोगे तो 350 में दे देंगे "
उसकी बात में मुझे उसके धंधे की बढ़ाने का लालच तो था ही मगर उसकी दशा देख मुझे ये लालच उसका हक हो जैसे लगने लगा ।बारीक से कपड़े की धोती जो ना जाने कब से नहीं धुली थी और कबसे पहनने के कारण वो घिस घिस कर पतली हुई हो वहीं हाल उसके कुर्ते का था और पगड़ी जो शायद धूप के बचाव की वजह से पहनी गई हो या इज्जतदार दिखने का ये एक तरीका है।
शहद खत्म हो चुका था और घर में वो हमेशा रहता है क्युकी सुबह उठकर अम्मी शहद के साथ कलौंजी रखकर खाने के लिए कहती है ये अमल सुन्नत (नबी का बताया हुआ ) है जिसके कई फायदे भी है ऐसा कहा जाता है के मौत के अलावा हर बीमारी में ये शिफा देता है।
मैं अन्दर जाकर अम्मी से पूछने गई तो उन्होंने 1 लीटर 150 में लाने को कहा ये कहकर के ये तो ऐसे ही बोलते है सही दाम लगवाना मैने हां में सर हिलाते हुए बर्तन और पैसे लेकर चली गई ।
मुझे आने में डर हुई थी इसलिए मुझसे पहले कोई और ले रहा था और मैं अपनी आदत के मुताबिक उससे सवाल करने लग गई।
मैं - कहा से आए हो काकाजी?
काकाजी - गुड़िया हम गाव से आए हैं।
मैं - गांव का नाम क्या है तो?
काकाजी - वो यहां से जाने तक पूरा दिन लगता है पिपखेदी उसके सरपंच ....वो है उन्होंने ही हमें ये रोज़गार बताया है यहां का पता भी बहुत नेक आदमी है वो भगवान उनका भला करे लाओ तुम्हारा बर्तन दो कितने लीटर चाहिए बोलो ?
(मेरे सवाल का इतना बड़ा जवाब मिलेगा मुझे नहीं पता था मगर मुझे ये सब नहीं जानना था जो उसने बताया )
मैं - एक लीटर काकाजी और अम्मी ने बोला है 150 ही देंगे ।
काकाजी - नहीं गुड़िया तुमको पता है कितनी मेहनत से निकलता है ये और हम एकदम सही दाम बता रहे है।
मैं - हां तो दे दो आप तो 200 में ही फिर (बिना ज़्यादा सोचे क्युकी उसकी इस बात पे मेरी सोच रुक गई की कितनी मेहनत से आखिर ।ये पेड़ पे चढ़ते होंगे फिर मधुमक्खी से बचते होंगे रिस्क लेकर शहद इकट्ठा कर पाते होंगे तो इनकी मजदूरी इनको मिलनी चाहिए और मेरी ये आदत थी कि बेचने वालो से ज़्यादा पैसे कम कराना अच्छा नहीं लगता था और मुझे ये भी पता था के घर जाकर अम्मी की डांट सुनना है।
(काकाजी शहद भरने में व्यस्त थे और मैं ने पूछ ही लिया कि "आपने ये शहद कहा से लिया है वैसे ?"
काकाजी - गुड़िया ये जो तुम्हारे सामने पेड़ हेना उसके उपर एक मधुमक्खी का छत्ता है वहीं से लाए है और बाकी दिनों में जहां से मिलता है वहीं से लेते हैं । ढूंढ़ना पढ़ता है बहुत ।
मैं - इतना सारा शहद आपको मुफ्त में मिला मतलब?
काकाजी - ( हंसकर ) गुड़िया मेहनत कितनी है ई तो देखो और तो और मधुमक्खी हमसे लड़ाई भी करने लग जाती है ना जाने कितने घाव करती है मेहनत मोल से ज़्यादा है उस हिसाब से मोल कम लगाया है और असली भी है बाज़ार जैसा मिलावटी थोड़ी किया है हमने ।
मैं - अच्छा ऐसा क्या ..फिर तो सही है ये लो आप आपकी मेहनत के 200 रुपए फिर (हंसकर )
(घर जाकर जब शहद से भरा बर्तन रसोई में रखा तो)
 अम्मी - " 50 रुपए बचे हुए तेरे पास रख ले खर्च मत करना मुझे सब्जी वाली को देने है क्युकी कल छुटे पैसे नहीं थे तो उधार लेनी पड़ी थी"।
मैं - "अम्मी वो नहीं माना और मैने 200 ही दे दिए उसको बेचारा बहुत गरीब लग रहा था "।
अम्मी - तेरे पास बहुत पैसे आ रहे हो जैसे तू बहुत अमीर हो जो सबको अपनी मर्ज़ी से देती रहा कर ना जाने ये आदत कब आएगी तुझे सही मोल भाव कराने की
(अम्मी और कुछ कहती इतने में मैंने कहा )
मैं - अरे मेरी कंजूस मां अब चला गया ना वो रोकू क्या उसे और मैं छत पे जा रही हूं आप चाय बना लो तो मेरे लिए भी वहीं ले आना साथ में पिएंगे ।
(कहकर छत पर चली गई और वहां रखे हुए पलंग ( चारपाई) पर बैठकर अपने गमलों के फूलों को निहारने लगी मैने देखा कि उस पर एक तितली जो काले रंग की थी और उस काले रंग पे कुछ सफेद बूंदे जैसे रात को आसमान में तारे दिखते है बिल्कुल वैसे दिखाई दे रही थी जो मेरे गमले के सफेद फूल पर बैठी थी और उसी का रंग उसने लिया होगा और मुझे इस बात की खुशी हो रही थी के मेरे फूल काम आने के लिए है हो उस तितली की खूबसूरती बढ़ा देते है ।
थोड़ी देर बाद ही जब मैने देखा के दूसरे गमले पे मधुमक्खी कबसे भिनभिना रही है ।उसे देखते ही मुझे थोड़ी देर पहले लिया शहद का किस्सा याद आ गया मैंने गौर किया तो देखा के ये मधुमक्खी मेरे गमले से फूलों का रस  ले जाकर उस पेड़ पर जहां उस बेचने वाले ने बताया था वहां इकट्ठा करने की फिराक में थी मगर उसको अब पता चल चुका था के उसकी मेहनत अब फ़िज़ूल हो चुकी थी क्युकी कोई उसका सारा शहद ले गया था मगर फिर अब वो अपना नया बसेरा बनाने की सोच में थी उसे देखकर मेरे मन में कई सवाल पैदा हो गए कि
की मुझे कीमत उस मधुमक्खी को देनी चाहिए या उस बेचनेवाले को ?

मेहनत किसकी ज़्यादा "मधुमक्खी की जो शहद इकट्ठा करती है या उस बेचनेवाले की जो उसे लेता है मधुमक्खी से लड़ कर या मेरी जिसने मिट्टी पास के खेत से जाकर लाई और फूल वाला पोधा उगाया वो भी अपने पैसों से लाकर फिर उसमें रोज़ पानी देकर और खाद डालकर उसमे फूल आने तक का इंतज़ार किया और उस फूल का रस वो मधुमक्खी ले गई और बेचनेवाले ने मेरी ही मेहनत मुझे ही बेचकर चला गया ।"
थोड़ी ही देर में अम्मी चाय लेकर मेरे पास बैठ गई और चाय पीते पीते मैंने कहा हां अम्मी , मैंने उसको शायद ज़्यादा ही पैसे दे दिए।
अम्मी हंसते हुए ..चल अब चाय पी ले मैं तो ऐसे ही डांट देती हूं दिल पे मत लिया कर आगे से ध्यान रखना ।
                                        WRITTEN BY
                                                      ZENAB KHAN



No comments:

Post a Comment