कुदरत
बड़ी आज़ादी से खिलते है फूल आजकल
मोहताजगी तो देखो आज खुशबू से फैसले रखने लगे।
खुश है वो या मायूस है वो भी
बस खिल के मुरझाना क्या ये भी कोई मामूल है।
बड़ी शिद्दत है उसमे के बदला ज़माना मगर अपनी चाल ना बदली
खिलना था खिल गया उसने हवा की चाल ना समझी।
कौन देगा पानी यहां सब तो कैद है बेफिक्र होके इस बात से
फिर खुदा ने बारिश कर दी और दुआ में तासीर है हम अब समझे।
मैं ही मांगने से गाफिल हूं रहमत से मेरे खुदा की
बेज़ुबान ने हासिल कर दिखाया और हम माज़ूल निकले।
WRITTEN BY
ZENAB KHAN
बड़ी आज़ादी से खिलते है फूल आजकल
मोहताजगी तो देखो आज खुशबू से फैसले रखने लगे।
खुश है वो या मायूस है वो भी
बस खिल के मुरझाना क्या ये भी कोई मामूल है।
बड़ी शिद्दत है उसमे के बदला ज़माना मगर अपनी चाल ना बदली
खिलना था खिल गया उसने हवा की चाल ना समझी।
कौन देगा पानी यहां सब तो कैद है बेफिक्र होके इस बात से
फिर खुदा ने बारिश कर दी और दुआ में तासीर है हम अब समझे।
मैं ही मांगने से गाफिल हूं रहमत से मेरे खुदा की
बेज़ुबान ने हासिल कर दिखाया और हम माज़ूल निकले।
WRITTEN BY
ZENAB KHAN
No comments:
Post a Comment