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SHAYARI LOVE

Monday, February 3, 2020

Alfaaz-E-Zindgi

Alfaaz-E-Zindgi


          फिरते हैं

दिल में अरमान - ए- मेहताब लिए फिरते है
लौ है छोटी सी मगर उम्मीद- ए- रोशनी लिए फिरते है।

ठंडक बन सके आंखों की ज़माने की
दिल में हम आग लिए फिरते है।

नींद तो हमारी है बेशक
मगर ख़्वाब अपनो के लिए फिरते है।

ठहर जाए ये वक़्त किसी कीमत पर
हम नादान दाम लिए फिरते है।

सुधर जाए ये क़ोम किसी बात पर
किसने कहा हम किताब लिए फिरते है।

सख्त है हम इस बुज़दिल ज़माने के लिए
हां,मगर खूबसरत से जज़्बात लिए फिरते है।

है खुदगर्ज यहां सब अपनी ही ख्वाहिशों में
हम उम्मत - ए- बुलंदी का अरमान लिए फिरते है।

जलते है वो बेवकूफ़ हमारे नाम से भी अब तो
फिक्रमंद है जबकि दाम लिए फिरते है।

खुली किताब के मानिंद हूं मैं
किसने कहा हम राज़ लिए फिरते है।

भाव तो सोने के तब ही गिर गए
हीरे को जब खुले आम लिए फिरते है।

वक़्त की मायूसी ने मुलाकातों पर पाबंद लगा दिया
मिजाज़ में मगर हम सलाम लिए फिरते है।

सोच गिर गई उनकी वो बेखबर रहे
वहीं थे वो जो बड़े बड़े काम लिए फिरते है।

शिकायत करता है दिल अक्सर दिमाग से
नज़रअंदाज़ कर इसे हम मुस्कान लिए फिरते है।

दौलत तो नहीं मगर शोहरत का एहसास हुआ है जबसे
फख्र है के हम क़लम लिए फिरते है।

कैसे पकड़ा दू महज़ किताबें बच्चों को
जब पढ़े लिखे भी यहां गावर हुए फिरते है।

किसकी हुक़ूमत मानू कोई समझा दो मुझे
हर कोई तो यहां उस्ताद हुए फिरते है।

जितना हो सके कर के अपनी नफ़्स को काबू
यहां इज़्ज़त के भी बाज़ार हुए फिरते है।

मसरूफियत की शिकायत रहती है अक्सर
वो कहते हैं हम नींद में भी कामयाबी का राग लिए फिरते हैं।
             Written by_
                                   Zenab khan

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